रविवार, 2 जुलाई 2017

प्रेम

रामकृष्ण परमहंस जी गले के कैंसर से पीड़ित थे। एक दिन डाक्टर ने कहा कि अब अन्तिम समय आ गया लगता है। यह जानकर उनकी पत्नी रोने लगी। इस पर रामकृष्ण जी ने कहा, शारदा! रो मत। क्योंकि जो मरेगा वह तो मरा ही हुआ था, और जो जिंदा था वह कभी नहीं मरेगा। और हाँ, चूड़ियां मत तोड़ना।  फिर तूने मुझे चाहा था या इस देह को? तूने किसे प्रेम किया था? मुझे या इस शरीर को? अगर इस देह को किया था तो तेरी मर्जी, फिर तू चूड़ियां तोड़ लेना। अगर मुझे प्रेम किया था तो मैं नहीं मर रहा हूं। मैं रहूंगा। मैं उपलब्ध रहूंगा। और शारदा ने चूड़ियां नहीं तोड़ीं। शारदा की आंख से आंसू की एक बूंद नहीं गिरी। लोग तो समझे कि उसे इतना भारी धक्का लगा है कि वह विक्षिप्त हो गयी है। लोगों को तो उसकी बात विक्षिप्तता ही जैसी लगी। लेकिन उसने सब काम वैसे ही जारी रखा जैसे रामकृष्ण जिंदा हों। रोज सुबह वह उन्हें बिस्तर से आकर उठाती कि अब उठो परमहंसदेव, भक्त आ गए हैं–जैसा रोज उठाती थी, भक्त आ जाते थे, और उनको उठाती थी आकर। मसहरी खोलकर खड़ी हो जाती–जैसे सदा खड़ी होती थी। ठीक जब वे भोजन करते थे तब वह थाली लगाकर आ जाती थी, बाहर आकर भक्तों के बीच कहती कि अब चलो, परमहंसदेव! लोग हंसते, और लोग रोते भी कि बेचारी! इसका दिमाग खराब हो गया! किसको कहती है? थाली लगाकर बैठती, पंखा झलती। वहां कोई भी नहीं होता था ।
           इस प्रकार शारदा सधवा ही रही। प्रेम की एक ऊंची मंजिल उसने पायी। रामकृष्ण परमहंस उसके लिए कभी नहीं मरे। प्रेम मृत्यु को जानता ही नहीं। लेकिन प्रेम की मृत्यु में जो मरा हो पहले, वही फिर प्रेम के अमृत को जान पाता है। प्रेम स्वयं मृत्यु है, इसलिए फिर किसी और मृत्यु को प्रेम क्या जानेगा!...वैसे भी क्योंकि आत्मा तो अनश्वर है तो विलाप व्यर्थ है।

शुक्रवार, 25 मार्च 2016

परिणाम

भगवान राम ने एक ही तीर से रावण को डाला था । परन्तु उसके शरीर में असंख्य छिद्र हो गए । लक्ष्मण ने राम जी से पूछा, भगवन् आपने एक तीर से रावण को मार डाला फिर असंख्य छिद्र कैसे हो गए ?  इस पर श्री राम बोले, यह रावण के दुर्गुर्णों का परिणाम है अन्यथा न शस्त्र किसी को मारते हैं , न शत्रु किसी को मार सकता है ; अपितु मनुष्य का पतन उसके पापों से होता है।

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

निंदा और प्रशंसा

एक  नगर  में  एक  मशहूर  चित्रकार  रहता था ।  चित्रकार  ने  एक  बहुत  सुन्दर तस्वीर  बनाई और उसे  नगर  के  चौराहे  मे  लगा  दिया  और   नीचे  लिख  दिया  कि  जिस किसी  को , जहाँ  भी   इस में  कमी  नजर  आये  वह  वहाँ  निशान  लगा  दे । जब  उसने  शाम  को  तस्वीर देखी   उसकी  पूरी  तस्वीर  पर  निशानों  से  ख़राब  हो  चुकी थी । यह  देख  वह  बहुत  दुखी  हुआ । उसे कुछ  समझ  नहीं  आ  रहा  था  कि  अब  क्या  करे  वह  दुःखी  बैठा  हुआ  था  ।  तभी  उसका एक मित्र  वहाँ  से  गुजरा  उसने  उस  के  दुःखी होने  का  कारण  पूछा  तो  उसने  उसे  पूरी  घटना बताई ।  उसने कहा  एक  काम  करो कल दूसरी  तस्वीर  बनाना  और  उस मे  लिखना  कि जिस  किसी  को  इस  तस्वीर  मे जहाँ  कहीं  भी कोई  कमी  नजर  आये  उसे  सही  कर  दे  ।   उसने  अगले  दिन  यही  किया  ।  शाम  को  जब उसने  अपनी  तस्वीर  देखी  तो  उसने  देखा  की  तस्वीर  पर  किसी  ने  कुछ  नहीं  किया । वह  संसार  की  रीति  समझ गया । "कमी  निकालना ,  निंदा  करना ,   बुराई  करना आसान ,   लेकिन  उन  कमियों  को  दूर  करना  अत्यंत  कठिन  होता  है "|

शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

बोधपाठ

 इंग्लैण्ड की राजधानी लंदन में यात्रा के दौरान एक शाम महाराजा जयसिंह सादे कपड़ों में बॉन्ड स्ट्रीट में घूमने के लिए निकले और वहां उन्होने रोल्स रॉयस कम्पनी का भव्य शो रूम देखा और मोटर कार का भाव जानने के लिए अंदर चले गए। शॉ रूम के अंग्रेज मैनेजर ने उन्हें “कंगाल भारत” का सामान्य नागरिक समझ कर वापस भेज दिया। शोरूम के सेल्समैन ने भी उन्हें बहुत अपमानित किया, बस उन्हें “गेट आऊट” कहने के अलावा अपमान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।अपमानित महाराजा जयसिंह वापस होटल पर आए और रोल्स रॉयस के उसी शोरूम पर फोन लगवाया और संदेशा कहलवाया कि अलवर के महाराजा कुछ मोटर कार खरीदने
चाहते हैं। कुछ देर बाद जब महाराजा रजवाड़ी पोशाक में और अपने पूरे दबदबे के साथ शोरूम पर पहुंचे तब तक
शोरूम में उनके स्वागत में “रेड कार्पेट” बिछ चुका था। वही अंग्रेज मैनेजर और सेल्समेन्स उनके सामने नतमस्तक खड़े थे। महाराजा ने उस समय शोरूम में पड़ी सभी छ: कारों को खरीदकर, कारों की कीमत के साथ उन्हें भारत पहुँचाने के खर्च का भुगतान कर दिया। भारत पहुँच कर महाराजा जयसिंह ने सभी छ: कारों को अलवर नगरपालिका को दे दी और आदेश दिया कि हर कार का उपयोग (उस समय के दौरान 8320 वर्ग कि.मी) अलवर राज्य में कचरा उठाने के लिए किया जाए। विश्व की अव्वल नंबर मानी जाने वाली सुपर क्लास रोल्स रॉयस कार नगरपालिका के लिए कचरागाड़ी के रूप में उपयोग लिए जाने के समाचार पूरी दुनिया में फैल गया और रोल्स रॉयस की इज्जत तार-तार हुई। युरोप-अमरीका में कोई अमीर व्यक्ति अगर ये कहता “मेरे पास रोल्स रॉयस कार” है तो सामने वाला पूछता “कौनसी?” वही जो भारत में कचरा उठाने के काम आती है! वही?
बदनामी के कारण और कारों की बिक्री में एकदम कमी आने से रोल्स रॉयस कम्पनी के मालिकों को बहुत नुकसान होने लगा। महाराज जयसिंह को उन्होने क्षमा मांगते हुए टेलिग्राम भेजे और अनुरोध किया कि रोल्स रॉयस कारों से कचरा उठवाना बन्द करवावें। माफी पत्र लिखने के साथ ही छ: और मोटर कार बिना मूल्य देने के
लिए भी तैयार हो गए। महाराजा जयसिंह जी को जब पक्का विश्वास हो गया कि अंग्रेजों को वाजिब बोधपाठ मिल गया है तो महाराजा ने उन कारों से कचरा उठवाना बन्द करवाया !
 

बुधवार, 16 जनवरी 2013

व्यापार का साधन

उन दिनों महावीरप्रसाद द्विवेदी सरस्वती नामक पत्रिका का संपादन करते थे । अपने लेखन के कारण वह काफी विख्यात हो चुके थे । एक बार एक सज्जन ने उन्हें स्वदेशी शक्कर की कुछ थैलियां भेंट की । उन महाशय का शक्कर की थैलियां देने के पीछे विचार यह था कि महावीर प्रसाद द्विवेदी सरस्वती में उनकी प्रशंसा में कुछ ऐसा लिख दें कि वह शहर भर में चर्चित हो जाएं ।
                                                                थैलियां देने के कुछ दिन बाद वह सज्जन फिर महावीर प्रसाद द्विवेदी से मिले और उन्हें अपनी थैलियों के विषय में याद दिलाया तो महावीर प्रसाद द्विवेदी मुस्कराते हुए उठे और अलमारी से उनकी थैलियां निकाल कर देते हुए बोले,'' भाई, तुम्हारी थैलियां जैसी की तैसी रखी हुई हैं। सरस्वती को व्यापार का साधन बना कर मैं उसे लक्ष्मी के समक्ष अपमानित नहीं कर सकता।''